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लेखनी कहानी -09-Mar-2023- पौराणिक कहानिया

एक दिन सुबह को ताहिर अली नमाज अदा करके दफ्तर में आए तो देखा, एक चमार खड़ा रो रहा है। पूछा, क्या बात है? बोला-क्या बताऊँ खाँ साहब, रात घरवाली गुजर गई। अब उसका किरिया-करम करना है, मेरा जो कुछ हिसाब हो, दे दीजिए, दौड़ा हुआ आया हूँ, कफन के रुपये भी पास नहीं हैं। ताहिर अली की तहवील में रुपये कम थे। कल स्टेशन से माल भेजा था, महसूल देने में रुपये खर्च हो गए थे। आज साहब के सामने हिसाब पेश करके रुपये लानेवाले थे। इस चमार को कई खालों के दाम देने थे। कोई बहाना कर सके। थोड़े-से रुपये लाकर उसे दिए।

 

चमार ने कहा-हुजूर, इतने में तो कफन भी पूरा होगा। मरनेवाली अब फिर तो आएगी नहीं, उसका किरिया-करम तो दिल खोलकर दूँ। मेरे जितने रुपये आते हैं, सब दे दीजिए। यहाँ तो जब तक दस बोतल दारू होगी, लाश दरवज्जे से उठेगी।

 

ताहिर अली ने कहा-इस वक्त रुपये नहीं हैं, फिर ले जाना।

 

चमार-वाह खाँ साहब, वाह! ऍंगूठे का निशान कराए तो महीनों हो गए; अब कहते हो फिर ले जाना। इस बखत दोगे, तो क्या आकबत में दोगे? चाहिए तो यह था कि अपनी ओर से कुछ मदद करते, उलटे मेरे ही रुपये बाकी रखते हो।

 

ताहिर अली कुछ रुपये और लाए। चमार ने सब रुपये जमीन पर पटक दिए और बोला-आप थूक से चुहिया जिलाते हैं! मैं आपसे उधार नहीं माँगता हूँ, और आप यह कटूसी कर रहे हैं, जानो घर से दे रहे हों।

 

ताहिर अली ने कहा-इस वक्त इससे ज्यादा मुमकिन नहीं।

 

चमार था तो सीधा, पर उसे कुछ संदेह हो गया, गर्म पड़ गया।

 

सहसा मिस्टर जॉन सेवक पहुँचे। आज झल्लाए हुए थे। प्रभु सेवक की उद्दंडता ने उन्हें अव्यवस्थित-सा कर दिया था। झमेला देखा, तो कठोर स्वर से बोले-इसके रुपये क्यों नहीं दे देते? मैंने आपसे ताकीद कर दी थी कि सब आदमियों का हिसाब रोज साफ कर दिया कीजिए। आप क्यों बाकी रखते हैं? क्या आपकी तहवील में रुपये नहीं हैं?

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